Poetry in memory of Dr BR Ambedkar: Voh tum ko Tilism ke darwaze tak le gaya tha....
वह तुम को तिलिस्म के दरवाज़े तक ले गया
वहाँ लटके सदियों पुराने क़ुफ़्ल* की चाबी भी दे गया
और जाते जाते कुछ मंतर भी बता गया
तुमने मंतर सुन लिए
चाबी कहीं टाँग दी
और उसका बुत* बना कर सामने रख लिया
अब तिलिस्म तुम्हारी आँखों से ओझल है
तुम इसे कैसे पार करोगे
मंतर** भूल चुके तुम
चाबी कहीं खो गयी
मगर तिलिस्म अब तक वहीं है
और तुम भी वहीं
शम्स उर रहमान अलवी
Voh tum ko Tilism ke darwaze tak le gaya
wahaa.n laTke sadiyo.n puraane qufl* ki chaabi bhi de gaya
aur jaate jaate kuchh mantar bhi bata gaya
tumne mantar sun liye
chaabi kahiiN Taang di
aur uska but banaa kar saamne rakh liya
ab Tilism tumhari aankho.n se ojhal hai
tum ise kaise paar karoge
mantar bhool chuke tum
chaabi kahii.n kho chuki hai
magar tilism ab tak wahii.n hai
aur tum bhi wahii.n
Shams Ur Rehman Alavi
Mini-dictionary
*Qufl, क़ुफ़्ल=lock
**mantar, मंतर= code word, teachings, real message
But, बुत= idol
NOTE: This Urdu nazm was written when there were a series of violent incidents directed against Dalits, and at that point of time, the poet felt that had the community imbibed his teachings, the situation would have been different.
Dr BR Ambedkar had tremendous farsightedness and he had not just found the ills but had also given the prescription to the followers as to how they can tackle casteist oppression. His struggle led to a tremendous change, however, casteist violence and casteism remain a major issue in the country. In fact, Dr Ambedkar had cautioned his followers as well. The verse is a poetic tribute to his farsightedness.
[नोट: डॉ भीमराव आंबेडकर न सिर्फ भारत के संविधान के निर्माता बल्कि बीसवीं सदी की दुनिया की बड़ी शख्सियतों में से एक थे. उन्होंने दलितों और पिछड़ों के साथ ज़ात की बुनियाद पर होने वाले ज़ुल्म और छुआछूत के खिलाफऐसी जद्दोजहद की जिसका कोई मुक़ाबला नहीं.
पूरी ज़िंदगी उन्होंने अपने समाज को जागरूक करने के लिए वक़्फ़ कर दी और इस समाज के मसाएल और उनके हल भी बताये. ये नज़्म उस वक़्त लिखी गयी थी जब दलितों के खिलाफ वायलेंस की एक साथ कई घटनाएं हुईं. इस नज़्म में यही मेसेज है कि अगर उनकी तालीम को सही मानों में लोग समझते, ख़ास तौर पर बताये गए नुस्खे जिसकी तरफ उन्होंने इशारा भी किया था, तो जो कुछ ज़ुल्म और असमानता अभी भी हम देख रहे, वह नहीं होता. महान शख्सियतों के साथ अक्सर ऐसा होता है मगर डॉ आंबेडकर ने अपने समाज को चेताया भी था. नज़्म को इस कांटेक्स्ट में पढ़ा जाए ]
یہ نظم، در اصل ڈاکٹر بھیم راؤ امبیڈکر کی شخصیت، ان کے دلت اور پست اقوام کے لئے کئے اٹھائے گئے اقدام اور انکی عظمت کا اعتراف ہے۔ شمس الر حمٰن علوی کا آبائ وطن لکھنؤ اور قصبہ کاکوری ہے مگر بھوپال میںرہائش اور تعلیم ہوئ۔ شاعری اور صحافتی زندگی بھی بھوپال میں گزری ہے۔